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यदि आप भी ज्योतिष विद्या में रूचि रखते है तो यह पुस्तक आपके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाली है। ज्योतिष विद्या के बारे में विस्तृत रूप से जानने के लिए इस पुस्तक को ज्योतिष विद्या का मुख्य प्रवेश द्वार माना गया है। इस पुस्तक में संस्कृत भाषा में श्लोको का समावेश किया गया है।
इस पोस्ट में हम आपको पंडित सीताराम द्वारा लिखित लघुपाराशरी ज्योतिषशास्त्र की पुस्तक Pdf फॉर्मेट में उपलब्ध करवाने जा रहे है, जिसके अंतर्गत संस्कृत श्लोको का समावेश किया गया है। यदि आप इन श्लोको को पढ़कर ज्योतिष ज्ञान अर्जित करना चाहते है, तो इस पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक तक जरूर पढ़े।
Laghu Parashari PDF Details
PDF Title | Laghu Parashari PDF |
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Language | Hindi |
Category | Book |
PDF Size | 53 MB |
Total Pages | 58 |
Download Link | Available |
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Laghu Parashari PDF
लघु पराशरी में भविष्य कथन के मूल सिद्धांत को 42 श्लोको में बताया गया है जो फलित ज्योतिष का मूल का आधार है। वेदव्यास के पिता महर्षि पराशर ने जब अपनी ज्योतिषी गणना से यह देखा कि आने वाले समय में पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा महाविनाशकारी विश्वयुद्ध होगा।
जिसमे भयंकर अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग से पृथ्वी में परिवर्तन आएगा। परिणामस्वरूप तत्कालीन भविष्य के कथन विफल हो जायेंगे। तब उन्होंने युद्ध उपरान्त पृथ्वी निवासियों के लिए फलित ज्योतिषी के नए सिद्धांतो की रचना की। जिसमे पराशर की विश्नोत्तरी, महादशा तथा राहु-केतु का समावेश किया।
जो आज फलित ज्योतिष का मूल आधार है। लघु पराशरी को जातक चंद्रिका भी कहा जाता है। इसमें 42 श्लोक है, जिन्हे पांच अध्यायों में विभक्त किया गया है।
लघु पराशरी के 42 श्लोको के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- इसमें नक्षत्रो की दशा के अनुसार ही शुभ और अशुभ फल कहते है। इस ग्रन्थ के अनुसार फल कहने में विश्नोतरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए। अष्टोत्तरी दशा मान्य नहीं है।
- सामन्य ग्रंथो पर से भाव राशि इत्यादि की जानकारी ज्योतिष शाश्त्रो से जानना चाहिए। इस शास्त्र में विरोध संज्ञा है ,वह शास्त्र के अनुरोध से कहते है।
- कोई भी गृह त्रिकोण का स्वामी होने पर शुभ फल दायी होता है तथा त्रिषडाय का स्वामी हो तो पाप फलदायी होता है। (तीसरे, छठे और ग्यारहवे भाव को त्रिषडाय कहते है।)
- इस स्थिति के बावजूद त्रिषडाय के स्वामी अगर त्रिकोण के स्वामी भी हो तो अशुभ फल ही देते है। (त्रिषडाय के अधिपति स्वराशि होने पर पाप फल नहीं आते है।)
- सौम्य गृह(बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चक्र) यदि केन्द्रो के स्वामी हो तो शुभ फल नहीं देते है)
- क्रूर ग्रह(सूर्य, शनि, मंगल, क्षीण चन्द्रमा और पाप ग्रस्त बुध) यदि केंद्र के आधिपति हो तो वे अशुभ फल नहीं देते है।
- लग्न से दूसरे अथवा बाहरवें भाव के स्वामी दूसरे ग्रहो के साहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते है। इसी के बजाय अन्य भावो में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते है।
- अष्ठम स्थान भाग्य भाव का व्यय स्थान है। सरल शब्दों में आठवां स्थान नवें स्थान से बाहरवा पड़ता है, जो कि शुभ फल दायी नहीं होता है। यदि लग्नेश भी हो तो शुभ फल देता है। यह स्थिति केवल महेश और तुला लग्न में आती है।
- शुभ ग्रहो के केंद्र अधिपति होने के दोष गुरु और शुक्र के सम्बन्ध में विशेष है। ये ग्रह केंद्र अधिपति होकर मारक स्थान (दूसरे और सातवे) में हो या इनके अधिपति हो तो बलवान मारक बनते है।
- केंद्र अधिपति दोष शुक्र की तुलना में बुध को कम और बुध की तुलना में चंद्र का कम होता है। इसी प्रकार सूर्य और चन्द्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता।
- मंगल दशम का भाव का स्वामी हो तो शुभ फल देता है किन्तु यही त्रिकोण का स्वामी भी हो तभी शुभ फल दायी होगा। केवल दशमेश होने से सुबह फल नहीं देता है। यह स्थिति केवल कर्क लग्न में बनती है।
- इसके अतिरिक्त राहु और केतु जिन भावो में बैठते है अथवा जिन-जिन भावो के अधिपतियो द्वारा मिलने वाले फल ही देंगे।
- ऐसे केन्द्राधिपति और त्रिकोण अधिपति जिनकी अपनी दूसरी राशि भी केंद्र और त्रिकोण को छोड़ कर अन्य स्थानों में नहीं होती है तो ऐसे ग्रहो के संबंध विशेष योगफल देने वाले होते है।
- बलवान त्रिकोण और केंद्र के अधिपति खड़ दोष युक्त हो, लेकिन आपस में संबंध बनाते है तो ऐसा संबंध योग कारक होता है। धर्म और कर्म स्थनो के स्वामी अपने-अपने स्थानों पर हो अथवा दोनों एक-दूसरे के स्थानों पर हो तो वे योग कारक होते है। दोनों अधिपतियों का संबंध योग कारक बताया गया है।
- नवम और पंचम स्थान के अधिपतियों के साथ बलवान केंद्र अधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी कहते है।
- योगकारक ग्रहो (यानी केंद्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहो की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।
- योगकारक ग्रहो से संबंध रखने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहो की अंतर्दशा में जिस प्रमाण में उसका स्तम्भ का बल है तदनुसार वह योग फल देगा।
- यदि एक ही ग्रह में केंद्र और त्रिकोण दोनों स्वामी हो तो योग कारक होता है। उसका यदि दूसरे त्रिकोण से संबंध हो जाए तो उससे बड़ा शुभ योग क्या हो सकता है।
- राहु केतु यदि केंद्र या त्रिकोण में बैठे हो और उनका किसी केंद्र अथव त्रिकोण अधिपति से संबंध हो जाए तो वह योग कारक होता है।
- धर्म और कर्म भाव के अधिपति क्रमश अष्टमेश और लाभेष हो तो इनका संबंध योगकारक नहीं हो सकता है।
- जन्म स्थान से अष्टम स्थान को आयु स्थान और इस स्थान से आठवां आयु की आयु है।
FAQs : Laghu Parashari in Hindi PDF
Laghu Parashari PDF Free Download कैसे करें?
यदि आप लघु पाराशरी पुस्तक Pdf फॉर्मेट में डाउनलोड करना चाहते है तो पोस्ट में दिए गए Download बटन पर क्लिक करके आसानी से फ्री में डाउनलोड कर सकते है।
ज्योतिष के कितने सूत्र हैं?
ज्योतिष के 8 सूत्र है।
ज्योतिष का जनक कौन है?
भारतीय ज्योतिष के जनक महर्षि पराशर को कहा गया है।
Conclusion :-
इस पोस्ट में Laghu Parashari PDF मुफ्त में उपलब्ध करवाई गयी है। साथ ही लघु पराशरी के 42 श्लोको के महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर प्रकाश डाला गया है। उम्मीद करते है कि लघु पराशरी PDF Download करने में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई होगी।
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